धनतेरस का पर्व दीपावली की पांच दिवसीय उत्सव श्रृंखला की शुभ शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। यह पावन दिन भगवान धन्वंतरि, मां लक्ष्मी और कुबेर देव की पूजा के लिए समर्पित होता है। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा, कथा और आरती करने वाले घरों में कभी धन की कमी नहीं होती तथा स्वास्थ्य और समृद्धि का वास होता है।
प्राचीन मान्यता के अनुसार, राजा हिम के पुत्र की शादी के समय ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि विवाह के चौथे दिन उसकी मृत्यु सर्पदंश से होगी। इस भविष्यवाणी को सुनकर पूरा राजपरिवार चिंतित हो गया। विवाह के बाद, उसकी बुद्धिमान पत्नी ने एक उपाय निकाला — उसने चौखट पर दीपक जलाकर रखा, सोने-चांदी के गहनों और बर्तनों का ढेर लगाकर चारपाई बनाई, पति को उस पर बैठाया और पूरी रात गीत गाते हुए जागती रही।
जब यमराज सर्प रूप में आए, तो दीपों और आभूषणों की चमक से उनकी आंखें चौंधिया गईं। वे अंदर नहीं आ सके और बिना कुछ किए लौट गए। इस प्रकार राजा हिम का पुत्र मृत्यु से बच गया। यह वही दिन था जिसे बाद में “धनतेरस” कहा गया — यमदीपदान और लक्ष्मी कृपा प्राप्ति का प्रतीक।
धनतेरस के दिन घर की अच्छी तरह सफाई की जाती है। शाम के समय पूर्व दिशा में दीपक जलाकर भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और कुबेर देव की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। तिल का तेल, चंदन, फूल, धूप, नैवेद्य और प्रसाद अर्पित कर पूजा की जाती है। इस दिन सोना, चांदी, बर्तन या किसी धातु की वस्तु खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता है।
धनतेरस न केवल धार्मिक आस्था का पर्व है, बल्कि यह समृद्धि, स्वास्थ्य और उज्जवल भविष्य की कामना का उत्सव भी है। इस अवसर पर बाजारों में रौनक देखने को मिलती है और लोग नए सामान की खरीदारी कर शुभ शुरुआत करते हैं।
आप सभी को धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं!