कहते हैं, अगर इरादे बुलंद हों और मेहनत में सच्चाई हो, तो इंसान कुछ भी हासिल कर सकता है। यह बात एकदम सटीक बैठती है मध्य प्रदेश की बेटी और IPS अधिकारी सिमाला प्रसाद पर, जिन्होंने ना सिर्फ प्रशासनिक सेवा में ऊँचाई हासिल की, बल्कि कला और अभिनय के क्षेत्र में भी अपनी अलग पहचान बनाई।
8 अक्टूबर 1980 को भोपाल में जन्मीं सिमाला एक ऐसे परिवार से आती हैं जहाँ शिक्षा और संस्कार की गहरी जड़ें थीं। उनके पिता डॉ. भागीरथ प्रसाद IAS अधिकारी रहे, सांसद बने, और उनकी मां मेहरुन्निसा परवेज, पद्मश्री सम्मानित लेखिका हैं। यह पारिवारिक पृष्ठभूमि सिमाला के लिए प्रेरणा बनी, लेकिन रास्ता आसान नहीं था।
उन्होंने बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी, भोपाल से B.Com और समाजशास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन किया, जिसमें वे गोल्ड मेडलिस्ट रहीं। पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने तय कर लिया था — मंज़िल बड़ी होगी, रास्ता कठिन हो तो क्या हुआ?
सिमाला ने पहले MPPSC परीक्षा पास की और डीएसपी बनीं, लेकिन उनका सपना था UPSC पास कर देश की सेवा करना। उन्होंने कोचिंग का सहारा नहीं लिया — सिर्फ अनुशासन, समर्पण और आत्मविश्वास के बल पर पहले ही प्रयास में 2010 में AIR 51 के साथ UPSC क्रैक कर लिया और IPS बनीं।
आज वे मध्य प्रदेश के बैतूल जिले की पुलिस अधीक्षक हैं, जहाँ वे कर्तव्यनिष्ठा और संवेदनशीलता के साथ अपनी जिम्मेदारी निभा रही हैं।
पुलिस अधिकारी बनना ही उनका एकमात्र सपना नहीं था। बचपन से कला और संस्कृति की तरफ रुझान रखने वाली सिमाला को एक दिन निर्देशक जैगम इमाम ने दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान देखा और अपनी फिल्म 'अलिफ' (2017) में अभिनय का प्रस्ताव दिया। सिमाला ने चुनौती स्वीकार की और अपने अभिनय से सभी का दिल जीत लिया।
इसके बाद 2019 में आई फिल्म ‘नक्काश’, जिसमें उन्होंने शारिब हाशमी और कुमुद मिश्रा जैसे कलाकारों के साथ स्क्रीन साझा की। अब वे अपनी अगली फिल्म ‘द नर्मदा स्टोरी’ में एक सुपरकॉप के किरदार में नजर आएंगी — एक ऐसी भूमिका जो उनके असली जीवन के करीब है।
IPS अधिकारी, अभिनेत्री, नृत्यांगना, साहित्य प्रेमी — सिमाला मानती हैं कि "इंसान की पहचान एक तक सीमित नहीं होनी चाहिए।" वे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेकर अपनी रचनात्मकता को भी उजागर करती हैं। उनका मानना है कि चाहे पुलिस सेवा हो या सिनेमा, दोनों में संवेदनशीलता और इंसानियत बेहद जरूरी है।
सिमाला प्रसाद की कहानी हमें यह सिखाती है कि:
कोचिंग नहीं, खुद पर भरोसा जरूरी है।
एक नहीं, कई पहचानें हो सकती हैं — अगर हम खुद पर सीमाएं ना लगाएं।
सपने पूरे करने के लिए एक ही रास्ता नहीं होता — मेहनत, अनुशासन और जुनून रास्ता खुद बना लेते हैं।