कभी क्रिकेट का नाम सुनते ही दिमाग में सचिन, धोनी या कोहली की तस्वीर उभरती थी क्योंकि हमें सालों तक यही सिखाया गया कि क्रिकेट मर्दों का खेल है।लेकिन अब वक्त बदल चुका है।अब जब मैदान में हरमनप्रीत कौर बल्ला घुमाती हैं, स्मृति मंधाना चौका लगाती हैं या दीप्ति शर्मा विकेट गिराती हैं तो पूरा स्टेडियम एक ही आवाज़ में चिल्लाता है “Women in Blue!” भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने वर्ल्ड कप जीतकर इतिहास रच दिया!
जब बेटियों ने सीमाएँ तोड़ीं, मैदान भी झुक गया
भारत की महिला क्रिकेट टीम ने पिछले कुछ वर्षों में वो कर दिखाया जो कभी कल्पना भी नहीं की जाती थी। उन्होंने ना सिर्फ वर्ल्ड कप फाइनल तक का सफर तय किया, बल्कि अपने प्रदर्शन से पूरी दुनिया का ध्यान खींचा।हरमनप्रीत कौर की 171 रनों की पारी आज भी भारतीय क्रिकेट के इतिहास के सबसे सुनहरे पलों में से एक है। वो पारी सिर्फ रन नहीं थी, वो एक statement थी कि अब औरतें सिर्फ देख नहीं रहीं, खेल भी रही हैं, जीत भी रही हैं।
Cricket में बेटियाँ सिर्फ खिलाड़ी नहीं, बदलाव की प्रतीक हैं
जब एक लड़की बल्ला उठाती है, तो वो सिर्फ गेंद को नहीं मारती वो उस सोच को भी तोड़ती है जो कहती है, “ये खेल लड़कों का है।” स्मृति मंधाना की grace,हरमनप्रीत की ताकत, झूलन गोस्वामी की consistency और शेफाली वर्मा की fearless energy इन सबने दिखा दिया कि क्रिकेट का कोई gender नहीं होता, सिर्फ passion और hard work होता है।
मीडिया और समाज की नज़रों में बराबरी कब आएगी?
जब पुरुष टीम मैच जीतती है तो हेडलाइन होती है “India Wins!” और जब महिला टीम जीतती है, तो हेडलाइन होती है “Indian Women Create History!” सवाल है क्या महिलाओं की जीत history है और पुरुषों की जीत normal? क्यों दोनों की नज़रों में फर्क है? अब वक्त आ गया है कि क्रिकेट को “Men’s Cricket” और “Women’s Cricket” कहकर अलग-अलग खानों में बाँटना बंद किया जाए। Cricket is Cricket. बस खिलाड़ी बदलते हैं, खेल नहीं।
हर मैच, हर जीत - नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा
आज देश की हर गली में कोई ना कोई छोटी लड़की बल्ला उठाकर खेल रही है। वो सिर्फ खेल नहीं रही, वो अपने सपनों का स्केच बना रही है। वो कह रही है “मैं भी कप्तान बन सकती हूँ, मैं भी वर्ल्ड कप जीत सकती हूँ, मैं भी अपने देश का नाम रोशन कर सकती हूँ” इन बेटियों की आँखों में वही चमक है जो कभी एक छोटे से गाँव के लड़के की आँखों में थी, जो आज विराट कोहली कहलाता है।
अब हमें clap से आगे बढ़कर action लेना होगा
महिला खिलाड़ियों को भी वही infrastructure, training और facilities मिलें
जो पुरुष खिलाड़ियों को दी जाती हैं।
स्कूलों और कॉलेजों में लड़कियों को भी
खेल को करियर के रूप में अपनाने के लिए motivate किया जाए।
मीडिया और ब्रांड्स को महिला खिलाड़ियों को
समान representation देना चाहिए।
equality सिर्फ शब्दों से नहीं आती,
वो visibility से आती है।
“Women in Blue”, गर्व का प्रतीक, प्रेरणा का नाम
Women in Blue सिर्फ एक टीम नहीं, वो एक movement है। उन्होंने समाज को सिखाया है कि सपनों की कोई gender boundary नहीं होती। उनकी जीत हर उस लड़की की जीत है जिसने कभी कहा था माँ, मैं भी क्रिकेट खेलना चाहती हूँ और माँ ने कहा था बेटा, ये खेल लड़कों का है।अब वही बेटियाँ मैदान में उतरकर कह रही हैं “ये खेल सबका है।”
खेल में बराबरी, सोच में भी बराबरी
क्रिकेट सिर्फ runs और wickets का खेल नहीं, ये equality, identity और pride का खेल है।जब बेटियाँ मैदान में उतरती हैं, तो वो सिर्फ अपने देश के लिए नहीं, हर उस लड़की के लिए खेलती हैं जिसे कभी किसी ने कहा था “तुम नहीं कर पाओगी।” उनकी हर जीत एक जवाब है “हम कर सकते हैं, और कर दिखाया है।”
अब पहचान में gender नहीं, performance दिखे
आज वक्त है कि जब कोई कहे “Indian Cricket Team,” तो हमारे दिमाग में सिर्फ male players की नहीं, Women in Blue की भी तस्वीर उभरे क्योंकि वो सिर्फ inspiration नहीं वो real heroes है उन्होंने साबित किया कि क्रिकेट सिर्फ मर्दों का खेल नहीं, बल्कि हर उस इंसान का खेल है, जिसके अंदर जुनून, मेहनत और हिम्मत है।