आज के दौर में जब महिलाएँ अपनी पहचान, अपनी आवाज़ और अपने अधिकारों के लिए खड़ी हो रही हैं, तब भी एक अजीब-सी सोच समाज में गहराई तक बैठी हुई है कि जो महिला खुद को महत्व देती है, अपनी boundaries सेट करती है, “ना” कहती है या अपनी इज़्ज़त मांगती है, उसे तुरंत “attitude वाली”, “दम्भी”, “बदतमीज़” या “ज़्यादा तेज़” का टैग दे दिया जाता है। सवाल ये नहीं है कि महिलाएँ बदल रही हैं, सवाल ये है कि समाज इस बदलाव को स्वीकार क्यों नहीं कर पा रहा।
Self-respect क्या होता है और इससे इतनी दिक्कत क्यों?
Self-respect का मतलब है खुद को लेकर सम्मान, अपनी भावनाओं को महत्व देना, किसी गलत चीज़ पर चुप न रहना, और अपनी सीमाएँ तय करना। लेकिन हमारे समाज में लड़की को बचपन से “adjust करो”, “सहन करो”, “मुस्कुरा दो”, “मत उलझो”, “सबकी सुनो” सिखाया जाता है। यही वजह है कि जब वही लड़की बड़ी होकर अपनी राय रखती है तो लोगों को लगता है कि वो “बहुत बोलती है”।असल में समस्या self-respect से नहीं, बल्कि पुरानी सोच से है, जहाँ लड़की की चुप्पी को संस्कार और उसकी आवाज़ को बदतमीज़ी समझा जाता है।
महिला की ‘ना’ समाज को क्यों चुभती है?
एक पुरुष “ना” कहे तो वह assertive माना जाता है, लेकिन एक महिला “ना” कहे तो उसे attitude समझ लिया जाता है। चाहे रिश्ते हों, ऑफिस हो या परिवार — महिला द्वारा सीमाएँ तय करना अभी भी कई लोगों को बर्दाश्त नहीं होता क्योंकि उनकी आदत एक ऐसी महिला को देखने की रही है जो “सब चलने देती है”, “सबके लिए sacrifice करती है”, “अपनी जरूरतें पीछे रखती है”। जैसे ही महिला खुद को प्राथमिकता देती है, समाज असहज हो जाता है।
जब self-respect को ego समझ लिया जाता है
महिलाओं पर अक्सर ये आरोप लगाया जाता है कि
“बहुत ego है”
“ज़्यादा attitude दिखाती है”
“बड़ी तेज़ है”
लेकिन ये वो बातें हैं जो तभी सुनाई देती हैं जब महिला अपनी self-worth पहचान लेती है। Self-respect ego नहीं है। Ego खुद को दूसरों से बड़ा मानना है, लेकिन self-respect खुद को दूसरों के बराबर मानने का हक है।दिक्कत यही है कि सदियों से महिलाएँ बराबरी मांगती नहीं, बल्कि पाने की कोशिश करती रही हैं। अब जब वो confidently अपनी जगह लेती हैं, तो इसे ego का नाम दे दिया जाता है।
कामकाजी महिलाओं के लिए यह टैग और भी भारी
Workplace में भी self-respect रखने वाली महिलाओं को
“bossy”
“aggressive”
“rude”
जैसे शब्दों से label किया जाता है।
जबकि वही qualities एक पुरुष में leadership मानी जाती हैं। महिलाएँ जब अपनी capability से आगे बढ़ती हैं, अपनी बात मजबूती से रखती हैं, तो कुछ लोग उन्हें कमजोर करने के लिए attitude का टैग लगा देते हैं।
रिश्तों में self-respect रखने वाली महिला कम पसंद क्यों की जाती है?
कई पुरुषों और परिवारों को एक ऐसी लड़की पसंद आती है जो बोलती कम हो, सवाल न पूछे, हर बात मान ले। लेकिन जब कोई महिला रिश्ते में सम्मान की मांग करती है, बराबरी चाहती है, toxic behaviour से समझौता नहीं करती, तो अचानक उसे “बागी”, “बदतमीज़” और “बहुत ज्यादा समझदार” समझ लिया जाता है।
असल में self-respect रिश्ते को कमजोर नहीं करती। यह रिश्ते को balance पर लाती है लेकिन जहाँ रिश्ते सिर्फ domination पर टिके हों, वहाँ एक self-respecting महिला हमेशा समस्या मानी जाती है।
सच्चाई: self-respect वाली महिलाएँ कमजोर नहीं, मजबूत होती हैं
Self-respect वाली महिलाएँ
अपनी बात साफ रखती हैं
अपने साथ गलत नहीं होने देतीं
अपने सपनों और मानसिक शांति को प्राथमिकता देती हैं
दूसरों को भी boundaries का सम्मान करना सिखाती हैं
अपनी पहचान गठित करती हैं
दूसरों की इज़्ज़त करती हैं, लेकिन खुद की भी उतनी ही करती हैं
ऐसी महिलाएँ society के पुराने ढांचे को हिला देती हैं, इसलिए लोग उन्हें attitude वाली कहते हैं ताकि उन्हें guilt feel करवाया जा सके।
परिवर्तन की शुरुआत: महिलाओं को चुप नहीं, गर्व होना चाहिए
आज का समय महिलाओं को guilt feel करवाने का नहीं, बल्कि उनकी clarity और confidence को celebrate करने का है।दुनिया तब बदलेगी जब महिलाएँ “attitude” के इन फालतू tags को दिल पर लेना छोड़ देंगी, और self-respect को अपनी ताकत बनाकर जिएँगी।क्योंकि Attitude problem नहीं है।Self-respect solution है।
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