आज जब हम डिजिटल दुनिया में हैं सोशल मीडिया, ब्लॉग, फोटोज़, वीडियोज़ इतनी आज़ादी है कि अपनी आवाज़ उठा सकते हैं। लेकिन इसके साथ एक डर भी है अगर किसी तस्वीर या वीडियो को एआई-टूल्स द्वारा बदल कर फैलाया जाए तो क्या? हाल ही में बाहरी रिपोर्ट्स ने दिखाया है कि भारत में महिलाओं को इस डर के कारण ऑनलाइन सक्रियता कम कर रही हैं। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि लगभग 10 % हेल्पलाइन मामलों में महिलाओं की तस्वीरों को एआई-डीपफेक्स में बदला गया था। अगर यह आंकड़ों में है, तो इसका असर कितने लाखों आम महिलाओं पर हो रहा होगा, जिन्हें सोशल मीडिया पर खुद को व्यक्त करना है, अपने काम को दिखाना है।
डर की वजह:
• सबसे पहला कारण एआई-डीपफेक्स और ‘न्यूडिफाइ’ ऐप्स तैयार आसान करना है
• दूसरा: जब महिलाएँ अपनी तस्वीरें पोस्ट करती हैं, उन्हें डर लगता है “क्या किसी ने मेरा फोटो बदलकर फैलाया तो?”
• तीसरा: कानून या प्लेटफॉर्म का जवाब धीमा या असमर्थ हो सकता है।
• चौथा: इस डर की वजह से महिलाएँ खुद नेटवर्किंग, ब्लॉगिंग या सेल्फ-ब्रांडिंग से पीछे हट रही हैं।
प्रभाव
• रिपोर्ट बताती है कि भारत में महिलाएँ न सिर्फ कम ऑनलाइन सक्रिय हो रही हैं बल्कि दृश्यता कम कर रही हैं।
• वहीं एक अन्य अध्ययन में दिखा कि महिलाओं की कार्यबल भागीदारी (female labour force participation) अभी भी बहुत कम है, जो डिजिटल जुड़ाव को भी प्रभावित करता है।
• जब महिलाएँ ऑनलाइन कम होंगी तब उनकी आवाज़, अवसर और पहुँच तीनों को नुकसान होगा।
समाधान क्या हो सकते हैं?
• पहला: कानून और प्लेटफॉर्म जवाबदेह बने। जल्दी कार्रवाई, स्पष्ट नियम और महिलाओं को सुरक्षित महसूस कराना।
• दूसरा: डिजिटल साक्षरता और जागरूकता। महिलाएँ जानें कि कैसे अपनी तस्वीरें सुरक्षित रखें, सेटिंग्स करें, जोखिम पहचानें।
• तीसरा: समर्थन नेटवर्क बनाएं। जैसे- जैसे महिलाएँ एक-दूसरे के अनुभव साझा करें, डर कम होगा।
• चौथा: ऑनलाइन जुड़ाव बढ़ाएँ। निजी ब्रांडिंग, सार्वजनिक प्लेटफॉर्म्स, ब्लॉगिंग के लिए सुरक्षित वातावरण हो।
• पाँचवा: पुरुष साथियों और समाज की भूमिका। जब पुरुष और समाज-संचार नेटवर्क कहें कि यह समस्या है, तभी बदलाव आएगा।
डिजिटल प्लेटफॉर्म हमारी आवाज़, हमारी पहचान, हमारी आज़ादी का एक हिस्सा है। लेकिन जब डर इस प्लेटफॉर्म पर भी काम करने लगे कि हम सुरक्षित नहीं हैं तो यह सिर्फ तकनीकी समस्या नहीं बल्कि सामाजिक आयाम ले लेती है। महिलाओं को इंटरनेट से पीछे हटना नहीं चाहिए, बल्कि उन्हें सुरक्षित, समर्थ, सुनने-योग्य होना चाहिए। क्योंकि जब उनकी आवाज़ ऑनलाइन कम होगी, तब समाज की तस्वीर अधूरी रहेगी।अब वक्त है डर खत्म करने का, डिजिटल हिस्सेदारी बढ़ाने का, और हर महिला को यह भरोसा दिलाने का कि “तुम इंटरनेट में हो, तुम सुरक्षित हो, तुम अपनी जगह पर हो।”