हौसले की स्टीयरिंग: ट्रक ड्राइवर बनीं भोपाल की योगिता रघुवंशी की कहानी

Yogita Raghuvanshi

शहरों की सड़कों पर कार या स्कूटी चलाती महिलाएं आज आम नज़ारा बन चुकी हैं। लेकिन जैसे ही सफर शहर की सीमा पार करता है और हाईवे या गांवों की ओर बढ़ता है, महिलाओं की मौजूदगी खुद-ब-खुद कम होती जाती है। ट्रकों, ट्रांसपोर्ट और भारी वाहनों की दुनिया आज भी पुरुष प्रधान मानी जाती है। लेकिन इसी दुनिया में एक नाम है—योगिता रघुवंशी, जो इस सोच को तोड़ चुकी हैं।

भोपाल की रहने वाली योगिता, दो बच्चों की मां और एक सिंगल मदर हैं। पिछले 15 वर्षों से ट्रक चलाकर न सिर्फ अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रही हैं, बल्कि समाज को यह भी दिखा रही हैं कि कोई भी काम सिर्फ "मर्दों का" नहीं होता।

मुश्किलों की मार, हौसले की जीत

वर्ष 2003, योगिता की जिंदगी का सबसे बड़ा तूफान लेकर आया। उनके पति राजबहादुर की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। दर्द यहीं खत्म नहीं हुआ—पति के अंतिम संस्कार में जाते वक्त उनके भाई की भी जान चली गई। एक झटके में योगिता अकेली रह गईं, दो छोटे बच्चों की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ पड़ी।

जहां एक आम महिला शायद टूट जाती, वहीं योगिता ने खुद को संभाला और ट्रक ड्राइवर बनने का साहसिक फैसला लिया। यह न कोई पारंपरिक विकल्प था, न ही आसान। लेकिन यही वह राह थी जो उन्हें आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान की ओर लेकर गई।

डिग्रियों से नहीं, जज्बे से बनी मिसाल

कॉमर्स और लॉ की डिग्रीधारी योगिता के पास ब्यूटिशियन का सर्टिफिकेट भी था। पर उन्होंने अच्छी कमाई और बच्चों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए ट्रक ड्राइविंग को चुना। आज, वह देश के आधे से ज्यादा राज्यों की यात्रा ट्रक से कर चुकी हैं। ढाबों पर खाना, कभी सड़क किनारे खुद खाना बनाना, ट्रक में सोना—सब कुछ अकेले करती हैं।

रास्तों ने सिखाई ज़िंदगी, ज़ुबानें और आत्मविश्वास

ट्रक चलाते-चलाते योगिता ने सिर्फ सड़कें नहीं नापीं, बल्कि ज़िंदगी के कई सबक भी सीखे। अब वह हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती, मराठी और तेलुगू जैसी भाषाएं धाराप्रवाह बोल लेती हैं—जो उन्होंने अपने सफर के दौरान सीखी हैं। ये भाषाएं उनके लिए न सिर्फ संवाद का जरिया बनीं, बल्कि हर नई जगह को अपनाने की ताकत भी दीं।

ना डर, ना हिचक — बस आगे बढ़ने की लगन

योगिता कहती हैं कि ड्राइविंग के दौरान सतर्कता बेहद जरूरी होती है, लेकिन उन्हें कभी डर नहीं लगा। दूसरे ट्रक ड्राइवर्स न केवल उनका सम्मान करते हैं, बल्कि उन्हें प्रोत्साहित भी करते हैं। ढाबों पर लोग उन्हें गर्मजोशी से स्वागत करते हैं, और कई बार महिलाएं उन्हें देख प्रेरित होती हैं।