तलाकशुदा महिलाओं को लेकर समाज का रवैया, क्या बदल रही है सोच?

divorced women in India

क्या है तलाकशुदा महिलाओं को लेकर समाज का रवैया? क्या अब बदल रही है सोच?

भारत में जब किसी महिला का तलाक होता है, तो उसके साथ सिर्फ रिश्ता नहीं टूटता, टूट जाती है उसकी सामाजिक पहचान, उसकी इज़्ज़त, और कई बार उसका आत्मविश्वास भी। समाज अब भी तलाक को एक “कलंक” की तरह देखता है, खासतौर पर जब फैसला लेने वाली महिला खुद हो। शादी टूटना एक रिश्ता खत्म होना है, लेकिन हमारे समाज में इसे औरत का ‘अंत’ मान लिया जाता है।

तलाकशुदा महिला = ‘असफल’ महिला?

अगर किसी पुरुष का तलाक होता है, तो कहा जाता है “कोई बात नहीं, ज़िंदगी आगे बढ़ाओ।” पर अगर किसी महिला का तलाक हो जाए, तो कहा जाता है “क्या उसमें कुछ कमी थी?” यह वही सोच है जो औरत के जीवन को सिर्फ रिश्तों की सफलता से जोड़ती है, उसकी खुद की खुशी या मानसिक शांति से नहीं। समाज यह भूल जाता है कि तलाक भी एक साहसिक निर्णय है जहाँ महिला उस रिश्ते से बाहर आती है जो उसे दुख, हिंसा या अपमान दे रहा था।

तलाक लेना आसान नहीं होता

तलाक लेना किसी महिला का “फैशन” या “गुस्से में लिया गया फैसला” नहीं होता। यह अक्सर लंबे अत्याचार, मानसिक तनाव, या असमान व्यवहार का नतीजा होता है। भारत में हर 5 में से 1 शादी में महिला किसी न किसी रूप में हिंसा झेलती है पर फिर भी वह बोल नहीं पाती, क्योंकि समाज कहता है “औरत सब कुछ सह ले तो ही घर चलता है।” जब वह आखिरकार हिम्मत जुटाकर तलाक लेती है, तो वही समाज कहता है “इसमें जरूर कुछ गलती रही होगी।”

तलाक के बाद का जीवन, समाज की निगाहें और सवाल

तलाक के बाद महिलाओं को सिर्फ कानूनी नहीं, भावनात्मक और सामाजिक जंग भी लड़नी पड़ती है। हर कोई उसकी कहानी जानना चाहता है “क्यों हुआ तलाक?”, “कौन गलत था?”, “अब आगे क्या करेगी?” कई बार रिश्तेदार, पड़ोसी और यहां तक कि दोस्त भी दूरी बना लेते हैं, जैसे तलाक कोई छूने से फैलने वाली बीमारी हो।

आर्थिक और सामाजिक संघर्ष

तलाक के बाद कई महिलाएं आर्थिक रूप से संघर्ष करती हैं क्योंकि ज्यादातर मामलों में वे आर्थिक रूप से निर्भर रही होती हैं।

  • समाज नौकरी देने में हिचकिचाता है

  • घर किराए पर लेने में मुश्किल होती है

  • “single mother” को लोग तिरछी नज़र से देखते हैं

लेकिन अब कई महिलाएं खुद अपने बल पर आगे बढ़ रही हैं बिज़नेस शुरू कर रही हैं, फ्रीलांसिंग कर रही हैं, बच्चों को अकेले पाल रही हैं। यह बदलाव धीरे-धीरे ही सही, पर हो रहा है।

बदलता भारत, नई सोच की शुरुआत

शहरों में और युवा पीढ़ी के बीच तलाक को अब stigma नहीं, एक personal choice की तरह देखा जाने लगा है।सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर कई महिलाएं खुलकर अपनी कहानी साझा कर रही हैं। टीवी, वेब सीरीज़ और फिल्मों में भी अब तलाकशुदा महिलाओं को मजबूत और आत्मनिर्भर किरदारों के रूप में दिखाया जा रहा है जैसे Thappad, Made in Heaven या The Great Indian Kitchen में देखा गया।

समाज को क्या बदलना चाहिए

तलाक के बाद महिला को सहारे की नहीं, सम्मान और बराबरी की नज़र की ज़रूरत होती है। समाज को ये समझना होगा कि तलाक कोई शर्म की बात नहीं हर महिला को अपने जीवन के फैसले लेने का अधिकार है। दोबारा शादी करना या न करना, ये उसका निजी निर्णय है। औरत का तलाक उसकी हार नहीं, बल्कि उसकी आज़ादी की घोषणा है।तलाक किसी भी रिश्ते का अंत है, लेकिन जीवन का नहीं। 

तलाकशुदा महिलाओं को “असफल” नहीं, “साहसी” कहा जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने वो कदम उठाया जो कई लोग डर के कारण नहीं उठा पाते। अब समय है कि समाज “तलाक” शब्द से डरना बंद करे और इसे एक नई शुरुआत के रूप में स्वीकार करे। क्योंकि एक रिश्ता टूट सकता है, लेकिन एक औरत की पहचान कभी नहीं।

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