Virginity को ‘इज़्ज़त’ से क्यों जोड़ा जाता है? समाज की सोच पर एक खुली बातचीत

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Virginity को ‘इज़्ज़त’ से क्यों जोड़ा जाता है?

“लड़की की इज़्ज़त उसके शरीर में होती है।” यह वाक्य हम बचपन से सुनते आए हैं फिल्मों में, समाज में, यहाँ तक कि घर के बड़ों से भी। पर क्या किसी इंसान की इज़्ज़त उसके शरीर या उसकी ‘Virginity’ से तय होती है? क्या एक महिला की वैल्यू सिर्फ इस बात पर निर्भर करती है कि उसने किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाए हैं या नहीं? यह सवाल आज के समय में पहले से ज़्यादा ज़रूरी हो गया है।

समाज की पुरानी परिभाषा – “Virginity = इज़्ज़त”

भारत सहित कई देशों में Virginity को एक तरह का “moral purity test” माना गया है। अगर कोई लड़की शादी से पहले “वर्जिन” है, तो समाज कहता है – “इज़्ज़तदार” है।अगर नहीं, तो सवाल उठते हैं – “कैसी लड़की है ये?” यह सोच सदियों पुरानी है, जहाँ महिलाओं को ‘पवित्रता’ की मूर्ति और पुरुषों को ‘अनुभव’ का हकदार माना गया और यही दोहरा मापदंड (double standard) आज भी कायम है लड़का अनुभव रखे तो “मर्द है”। लड़की रखे तो “बदनाम है”

“इज़्ज़त” का असली मतलब क्या है?

“इज़्ज़त” शब्द का अर्थ है — सम्मान, आत्म-मूल्य और इंसानियत। लेकिन हमने इस शब्द को केवल महिलाओं के शरीर से जोड़ दिया। किसी इंसान की इज़्ज़त उसकी सोच, कर्म और व्यवहार से तय होती है न कि उसके शरीर या सेक्सुअल इतिहास से।“अगर किसी की virginity चली जाए तो इज़्ज़त नहीं, बस समाज की सोच खो जाती है।”यह वक्त है जब हमें यह समझना होगा कि इज़्ज़त शरीर में नहीं, इंसानियत में होती है।

Virginity Test – एक अपमानजनक परंपरा

भारत और दुनिया के कई हिस्सों में आज भी कुछ समुदाय “Virginity Test” करवाते हैं जहाँ शादी से पहले लड़की की “शुद्धता” साबित करनी पड़ती है। ये टेस्ट न सिर्फ वैज्ञानिक रूप से गलत हैं, बल्कि महिलाओं के आत्म-सम्मान का उल्लंघन भी करते हैं। WHO (World Health Organization) ने 2018 में कहा था कि “Virginity Test एक हिंसक और अपमानजनक प्रथा है, जिसका कोई चिकित्सा आधार नहीं है।”फिर भी, यह सोच आज भी कई परिवारों और समाजों में जीवित है। क्योंकि हमें महिलाओं पर भरोसा करना नहीं सिखाया गया, बस जज करना सिखाया गया है।

मानसिक और भावनात्मक असर

जब किसी लड़की को उसकी virginity के आधार पर जज किया जाता है,  तो उसका आत्मविश्वास और self-worth गहराई से प्रभावित होते हैं। कई लड़कियाँ शर्म, अपराधबोध और डर में जीती हैं,  क्योंकि उन्हें सिखाया गया है “अगर virginity चली गई, तो इज़्ज़त चली गई।” लेकिन सच्चाई ये है virginity कोई trophy नहीं, ये सिर्फ एक biological स्थिति है, moral नहीं। इस मानसिकता ने न जाने कितनी महिलाओं को guilt और trauma में धकेल दिया है।

पुरुषों के लिए क्यों नहीं ऐसे सवाल?

कभी सोचा है क्यों “virgin” शब्द सिर्फ महिलाओं के लिए जजमेंट का पैमाना है? क्यों किसी पुरुष से कभी नहीं पूछा जाता “क्या तुम वर्जिन हो?” इससे साफ़ होता है कि यह सोच gender inequality की उपज है। जहाँ महिला को “संस्कृति की रखवाली” का बोझ उठाना पड़ता है और पुरुष को “स्वतंत्रता” का अधिकार दिया जाता है। बराबरी तभी संभव है, जब सवाल दोनों से एक जैसे पूछे जाएँ या फिर किसी से भी नहीं।

बदलाव की शुरुआत, सोच में सुधार

अब वक्त आ गया है कि हम “Virginity = इज़्ज़त” वाली सोच को बदलें। क्योंकि इज़्ज़त किसी की पसंद या निजी जीवन से नहीं, उसके आदर्शों, विचारों और कर्मों से तय होनी चाहिए। शिक्षा, संवाद और सोशल मीडिया ने आज नई सोच को जन्म दिया है। नई पीढ़ी खुलकर बोल रही है “मेरा शरीर, मेरी पसंद इसमें शर्म कैसी?” अगर समाज सच में “इज़्ज़त” की बात करता है, तो सबसे पहले उसे महिलाओं की स्वतंत्रता का सम्मान करना सीखना होगा।

Virginity को ‘इज़्ज़त’ से जोड़ना, महिलाओं को उनकी आज़ादी से दूर करने का सबसे पुराना तरीका रहा है। अब समय है कि हम इस सोच को बदलें और यह स्वीकार करें इज़्ज़त किसी के शरीर में नहीं, उसके इंसान होने में है। “Virginity एक स्थिति है, पर सम्मान एक मूल्य है और ये हर इंसान का हक़ है, चाहे उसका शरीर कैसा भी हो।”

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