हम महिलाएं सबके लिए सोचती हैं घर, बच्चे, पति, सास-ससुर, ऑफिस, रिश्तेदार लेकिन एक सवाल अक्सर भूला जाता है, अपने लिए कब सोचती हैं हम? हम हमेशा दूसरों की ज़रूरतों को प्राथमिकता देती हैं, लेकिन अपनी थकान, अपनी चाहतें, अपनी मानसिक शांति को नज़रअंदाज़ कर देती हैं। आज के दौर में जब महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, तब “अपने लिए वक्त निकालना” कोई विलासिता नहीं, बल्कि एक ज़रूरत बन गया है। आंकड़े बताते हैं औरत खुद को सबसे आखिर में रखती है
एक रिपोर्ट (National Family Health Survey – NFHS-5, 2023) के अनुसार:
भारत में लगभग 68% महिलाएं घर और बाहर दोनों जगह काम करती हैं।
इनमें से 80% से ज़्यादा महिलाएं बताती हैं कि उन्हें “अपने लिए समय” नहीं मिलता।
वहीं, एक इंटरनेशनल सर्वे (UN Women, 2022) में पाया गया कि भारतीय महिलाएं औसतन 9 घंटे घरेलू कामों में और सिर्फ़ 45 मिनट अपने लिए खर्च करती हैं।
यानी दिन के 24 घंटों में खुद के लिए सिर्फ़ 3% समय सोचिए, कितना कम! ये आंकड़े बताते हैं कि आज भी महिला “सबकी ज़रूरत” बन गई है, लेकिन “खुद की ज़रूरत” नहीं समझती।
हमारे समाज में ये मान्यता गहरी बैठी है कि अगर कोई महिला अपने लिए वक्त निकालती है, तो लोग उसे “स्वार्थी” या “ग़ैर-जिम्मेदार” कहते हैं। लेकिन असलियत में, खुद की देखभाल (self-care) किसी भी औरत का हक़ है, ना कि गुनाह। WHO की एक रिपोर्ट (World Health Organization, 2022) के मुताबिक, “भारत में 45% महिलाएं मानसिक तनाव (stress) या चिंता (anxiety) से जूझती हैं, और उनमें से आधी ने कभी अपनी देखभाल के लिए समय नहीं निकाला।” ये आंकड़ा सिर्फ़ हेल्थ का नहीं, बल्कि सोच का संकेत है हमें अपने लिए वक्त निकालने की मानसिक आज़ादी भी चाहिए।
हर महिला के लिए क्यों ज़रूरी है ‘Me Time’ ?
मानसिक शांति के लिए:
दिनभर की भागदौड़ और ज़िम्मेदारियाँ मन को थका देती हैं। थोड़ा “Me Time” मन को शांत करता है, तनाव कम करता है और सोच साफ़ बनाता है।
शारीरिक स्वास्थ्य के लिए:
Self-care में आराम, योग, व्यायाम या सैर शामिल होती है ये सब शारीरिक सेहत के लिए ज़रूरी हैं। WHO बताता है कि हर दिन 30 मिनट की वॉक से 40% तनाव घटता है।
रिश्तों में संतुलन के लिए:
जब आप खुद खुश रहती हैं, तो घर का माहौल भी पॉज़िटिव रहता है। आपकी मुस्कान पूरे घर की रौनक बन जाती है।
आत्मविश्वास और पहचान के लिए:
खुद के लिए वक्त निकालना अपने भीतर की आवाज़ सुनने जैसा है “मैं कौन हूँ?”, “मुझे क्या पसंद है?”, “मुझे क्या चाहिए?”
इन सवालों के जवाब ही आपकी पहचान तय करते हैं।
अब लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है। पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे के “Me Time” की अहमियत समझ रहे हैं। कई परिवार अब इस बात पर ज़ोर देते हैं कि घर संभालने के साथ खुद की देखभाल भी ज़रूरी है। शहरों में “Self-Care Sunday” या “No-Chore Day” जैसे ट्रेंड बढ़ रहे हैं, जहाँ महिलाएं एक दिन सिर्फ़ अपने लिए रखती हैं किताब पढ़ना, सैर करना, या बस आराम करना। ये बदलाव छोटा लग सकता है, लेकिन इसका असर बड़ा है।
अगर आपको लगता है कि “मेरे पास तो समय ही नहीं,” तो याद रखिए समय बनाना पड़ता है, मिलता नहीं। यहाँ कुछ छोटे-छोटे कदम हैं जो आप आज से शुरू कर सकती हैं
सुबह 10 मिनट सिर्फ़ खुद के लिए: चाय के साथ खिड़की के पास बैठें और मोबाइल से दूर रहें।
दिन में 15 मिनट वो करें जो दिल को सुकून दे: चाहे गाना सुनना, पेंटिंग, जर्नलिंग या पौधों को पानी देना।
सप्ताह में एक बार ‘Me Date’ रखें: अकेले कॉफी पीने जाएं या अपनी पसंद की फिल्म देखें।
कभी-कभी ‘ना’ कहना सीखें: हर चीज़ के लिए हाँ कहना आपकी जिम्मेदारी नहीं।
सोशल मीडिया ब्रेक लें: दूसरों की ज़िंदगी देखने से बेहतर है अपनी महसूस करें।
Harvard Business Review (2023) के एक अध्ययन के अनुसार, जो लोग हर दिन 30 मिनट खुद के लिए रखते हैं, उनकी उत्पादकता (productivity) 35% बढ़ती है और तनाव 40% कम होता है। यानी खुद के लिए वक्त निकालना सिर्फ़ भावनात्मक नहीं, व्यावहारिक ज़रूरत भी है। यह आपके काम, रिश्ते और मानसिक स्वास्थ्य – तीनों को संतुलित रखता है।