समय बदल चुका है। आज की पीढ़ी शिक्षित है, आर्थिक रूप से स्वतंत्र है और रिश्तों को बराबरी के स्तर पर जीना चाहती है। लेकिन जब बात शादी की आती है, तो सोच अब भी कई जगह पुरानी रह जाती है। यही वजह है कि आधुनिक शादियों में भी परंपरागत उम्मीदों से टकराव पैदा हो जाता है। सवाल यह है कि आखिर यह टकराव कब खत्म होगा?
आधुनिक सोच, पर पुरानी उम्मीदें
आज की शादियाँ पहले जैसी नहीं रहीं। अब पति और पत्नी दोनों काम करते हैं, दोनों जिम्मेदारियाँ साझा करते हैं और दोनों अपने करियर को बराबर महत्व देना चाहते हैं। लेकिन कई बार समाज, परिवार या खुद साथी की सोच अब भी पुरानी होती है। उनसे यह उम्मीद की जाती है कि पत्नी घर और परिवार को संभाले, परंपराएँ निभाए और पति ही घर का मुखिया बने। इसी सोच से शुरू होता है असली टकराव जब नई सोच पुराने नियमों से भिड़ जाती है।
महिला की भूमिका पर दोहरी उम्मीदें
आधुनिक महिलाएँ आज डॉक्टर, इंजीनियर, मैनेजर या उद्यमी हैं, लेकिन उनसे अब भी यह उम्मीद की जाती है कि वे “घर और बाहर” दोनों जगह परफेक्ट रहें। अगर वो ऑफिस के काम में व्यस्त हो जाएँ, तो उन्हें “घर की जिम्मेदारी भूलने” का ताना मिलता है।रिसर्च बताती है कि भारत में 65% working women को घर के काम में भाग न लेने पर गिल्ट महसूस कराया जाता है। जबकि पुरुषों से शायद ही कभी पूछा जाता है कि “तुम घर में कितना योगदान देते हो?”यही दोहरी सोच आधुनिक शादी में तनाव और असंतुलन पैदा करती है।
पति भी फँसा है पुराने और नए के बीच
सिर्फ महिलाएँ नहीं, पुरुष भी इस टकराव से जूझते हैं। आधुनिक पति अपनी पत्नी को बराबरी देना चाहता है, लेकिन कई बार परिवार या समाज के दबाव में फँस जाता है। वह समझता है कि रिश्ते में equality जरूरी है, लेकिन जब घरवालों को बहू की आज़ादी पसंद नहीं आती, तो उसे बीच का रास्ता चुनना पड़ता है। यह cultural conflict उसे confused बना देता है कि उसे modern partner बनना है या traditional बेटा।
प्यार और परंपरा के बीच की खींचतान
भारतीय समाज में शादी हमेशा से परिवार-केंद्रित रही है। लेकिन आज के कपल्स अब emotional independence को भी उतना ही जरूरी मानते हैं।वे चाहते हैं कि उनका रिश्ता mutual respect और understanding पर टिका हो, न कि “लोग क्या कहेंगे” पर लेकिन जब परिवार या रिश्तेदार हर छोटी बात पर comment करने लगते हैं “इतनी देर तक बाहर क्यों?”, “इतना makeup क्यों?”, “पति को इतना freedom क्यों दे रखा है?” तो प्यार की जगह धीरे-धीरे दबाव ले लेता है यह दखल modern रिश्तों की सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है।
सोशल मीडिया और तुलना का नया तनाव
सोशल मीडिया ने modern marriage में एक और समस्या जोड़ दी है तुलना।हर कोई अपनी “perfect couple” वाली तस्वीरें दिखा रहा है, लेकिन असलियत में हर रिश्ते की अपनी कहानी होती है। इस comparison की वजह से couples सोचने लगते हैं कि “हम वैसे क्यों नहीं हैं?” यह unrealistic उम्मीदें रिश्तों की mental peace को खत्म कर देती हैं। Modern love अब filter से भरा हुआ दिखता है, लेकिन अंदर कई अधूरी बातें छिपी होती हैं।
समाधान : बदलाव सोच में चाहिए, सिस्टम में नहीं
शादी के मॉडल को नहीं, सोच को modern बनाना जरूरी है। Modern marriage का मतलब यह नहीं कि परंपराएँ छोड़ दी जाएँ, बल्कि उन्हें समय के साथ evolve किया जाए। जरूरी है कि परिवार अपने बच्चों के रिश्तों में दखल देने के बजाय support करे। साथी एक-दूसरे की ambitions को respect करें। घर की जिम्मेदारियाँ gender के हिसाब से नहीं, mutual understanding के हिसाब से बाँटी जाएँ। अगर पति ऑफिस से थका हुआ आता है, तो पत्नी को भी आराम चाहिए। दोनों इंसान हैं, और दोनों को care की जरूरत है।
बदलाव की शुरुआत घर से
बदलाव की शुरुआत समाज से नहीं, घर से होनी चाहिए। जब एक सास अपनी बहू को बेटी की तरह support करती है, जब एक पिता अपनी बेटी को शादी के बाद भी अपने सपने जीने की आज़ादी देता है, जब एक पति घर के काम में बिना ego के मदद करता है तभी modern marriage सच में modern कहलाएगी। छोटी-छोटी कोशिशें ही बड़ा बदलाव लाती हैं।
बराबरी ही modern रिश्ते की पहचान है
Modern marriage की खूबसूरती इसी में है कि उसमें प्यार, सम्मान और साझेदारी तीनों हों। अगर परंपरा प्यार को सीमित करने लगे, तो उसे redefine करने का समय आ गया है। क्योंकि शादी किसी का control नहीं, बल्कि दो दिलों की understanding का नाम है।Modern होना western होना नहीं है, बल्कि संवेदनशील, न्यायप्रिय और समान होना है।जब सोच evolve होगी, तभी modern marriage और traditional expectations के बीच का यह टकराव खत्म होगा।
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