भारत में शादी को दो परिवारों का जुड़ाव कहा जाता है, लेकिन असल जिम्मेदारी अक्सर सिर्फ महिला पर डाल दी जाती है। उससे उम्मीद की जाती है कि वह नए घर के नियम समझे, रिश्तों में ढले, और खुद को बिना शिकायत बदले। जबकि यह बदलाव एकतरफा नहीं होना चाहिए। रिश्ते बराबरी से बनते हैं, किसी एक से नहीं।
लड़की अपनी पूरी पहचान पीछे छोड़कर आती है
शादी के बाद एक लड़की अपने घर, माता पिता, दोस्तों और उस माहौल को छोड़ती है जहाँ उसने पूरी जिंदगी बिताई होती है। इतनी बड़ी भावनात्मक दूरी के बावजूद उससे उम्मीद की जाती है कि वह नए माहौल में तुरंत घुलमिल जाए। यह adjustment नहीं, बल्कि एक गहरा adoption होता है।
नई दुनिया में कदम रखना आसान नहीं होता
शादी के बाद लड़की को नए रिश्ते समझने होते हैं, घर के अलग तरीकों को स्वीकारना होता है, और कई बार अपनी पसंदों को भी पीछे रखना पड़ता है। उसे यह सिखाया जाता है कि अच्छी बहू वही है जो बदले। लेकिन यह कोई नहीं बताता कि अच्छा परिवार वह है जो नए सदस्य को भी अपनाए, उसे समझे और उसे सुरक्षित महसूस कराए।
पुरुष से बदलाव की उम्मीद नहीं होती है
पुरुष का घर वही रहता है, उसकी दिनचर्या वही रहती है और उसके रिश्ते भी वैसे ही रहते हैं। उससे शायद ही कभी किसी बड़े बदलाव की उम्मीद की जाती है। जब एक व्यक्ति को पूरा जीवन बदलना पड़ता है, और दूसरे को नहीं, तो रिश्ते बराबरी से कैसे चलेंगे?
महिलाओं का सबसे बड़ा संघर्ष, अपनी पहचान बचाना
बहुत सी महिलाएं बताती हैं कि शादी के बाद सबसे मुश्किल हिस्सा नई जगह को नहीं, बल्कि अपनी पहचान को बनाए रखना होता है। उन्हें अपनी बात रखते समय भी संकोच होता है, ताकि कोई उन्हें "ज्यादा बोलने वाली" न कह दे। घर को अपना बनाने की कोशिश में वे खुद ही कहीं खो जाती हैं।
रिश्ते एकतरफा adoption से नहीं, mutual understanding से चलते हैं
शादी का असली अर्थ दो परिवारों का एक-दूसरे को अपनाना है। यदि लड़की नए घर को अपना मानती है, तो नए घर को भी उसके लिए वही अपनापन दिखाना चाहिए। अपनापन जबरदस्ती नहीं दिया जा सकता, यह सम्मान, स्पेस और समझ से धीरे-धीरे पैदा होता है।
परिवार की भूमिका, नई बहू को अपनाना भी उनका दायित्व है
जब एक लड़की नए परिवार में आती है, तो परिवार का भी कर्तव्य है कि वह उसे emotionally support करे। अगर वो लड़की की बात सुने, उसकी जरूरतों को समझे और उसे उसकी पहचान के साथ स्वीकार करे, तो लड़की खुद ही घर को दिल से अपनाती है। यही रिश्ते को मजबूत आधार देता है।
आज का समय बदल रहा है, लेकिन अभी भी लंबा रास्ता बाकी है
कुछ आधुनिक परिवार बराबरी और mutual respect को महत्व देते हैं। लेकिन अब भी बहुत सी महिलाएं शादी के बाद adopt करने के नाम पर अपनी individuality खो देती हैं। समाज को यह स्वीकार करना होगा कि बदला सिर्फ एक से नहीं, दोनों से जरूरी है।
शादी का असली आधार बराबरी है, समझौता नहीं
शादी सिर्फ adjustment का नाम नहीं, बल्कि दो लोगों की equal partnership है। अगर दोनों तरफ से अपनाने की कोशिश हो, दोनों एक-दूसरे की comfort को समझें, तो घर सच में घर बनता है। औरत हमेशा से घर बनाने की शक्ति रखती है, लेकिन घर को भी उसका सहारा बनना चाहिए।
लड़की adopt क्यों करे, परिवार भी उसे अपनाए
एक लड़की अपना घर, अपनी दुनिया और अपनी पहचान छोड़कर आती है। इसलिए सवाल यह नहीं होना चाहिए कि लड़की adopt करे या adjust करे। सवाल यह होना चाहिए कि परिवार उसे कितने दिल से अपनाता है। शादी तब खूबसूरत बनती है जब दोनों पक्ष बराबरी से एक-दूसरे का साथ देते हैं और रिश्ते को सुकून की जगह बनाते हैं।
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