Work From Home या Work For Home ? महिलाओं के लिए असली संतुलन क्या है?

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Work From Home या Work For Home,  असली संतुलन क्या है?

“तुम तो घर से काम करती हो, कितना आसान होगा तुम्हारे लिए!” कितनी बार यह बात किसी ने न किसी कामकाजी महिला से कही होगी पर जो महिलाएं सच में work from home करती हैं, वो जानती हैं कि ये ‘आसान’ नहीं बल्कि ‘सबसे मुश्किल’ है।घर से काम करने का मतलब सिर्फ लैपटॉप खोलकर ऑफिस की मीटिंग अटेंड करना नहीं है, बल्कि साथ ही गैस पर चाय चढ़ाना, बच्चे को ऑनलाइन क्लास में बैठाना, और डोरबेल पर बार-बार उठना भी है।कई बार तो ऐसा लगता है कि हम work from home नहीं बल्कि work for home कर रहे हैं।

Work From Home: एक सुविधा जो चुनौती बन गई

कोविड के बाद से work from home का चलन बढ़ा, और इससे महिलाओं को लगा कि अब वो घर और काम दोनों को साथ संभाल पाएंगी लेकिन धीरे-धीरे ये सुविधा एक दबाव में बदल गई। ऑफिस की मीटिंग्स के बीच किचन के टाइमिंग्स एडजस्ट करना या ऑफिस कॉल्स के बीच बच्चों की पढ़ाई देखना ये multitasking अब आदत बन चुकी है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में करीब 70% महिलाएं जो work from home कर रही हैं, वो दिन में 10 से 12 घंटे तक काम करती हैं जिसमें आधा समय घर के कामों में चला जाता है। मतलब professional work और personal chores के बीच की लाइन धुंधली हो चुकी है।

Work For Home: अनदेखा लेकिन असली काम

“घर का काम भी तो काम है” ये लाइन सुनने में आसान है, लेकिन मानने में नहीं।घर चलाने, बच्चों को संभालने, बुज़ुर्गों का ध्यान रखने, और सबकी जरूरतें पूरी करने का जो unpaid labour महिलाएं करती हैं, वो किसी भी corporate job से कम नहीं।कामकाजी महिलाएं जब ऑफिस के साथ घर के काम भी संभालती हैं, तो वो दो-दो नौकरियाँ एक साथ करती हैं एक paid और एक unpaid।फर्क बस इतना है कि घर के काम की न तो कोई सैलरी होती है और न ही कोई छुट्टी।

संतुलन की चुनौती: खुद को बीच में खोजना

महिलाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती सिर्फ time management नहीं है बल्कि mental load को संभालना है।
हर वक्त ये सोचना कि किचन में क्या बनाना है, कपड़े धुले या नहीं, ऑफिस का प्रोजेक्ट सबमिट हुआ या नहीं", यह invisible pressure महिलाओं को थका देता है।

कई महिलाएं guilt महसूस करती हैं अगर वो ऑफिस का काम प्राथमिकता दें, तो “घर नहीं संभालती” कहलाती हैं और अगर घर को प्राथमिकता दें, तो “career-oriented नहीं” समझी जाती हैं यानि जो भी करें, society के नजर में women हमेशा “कमतर” ठहराई जाती हैं।

संतुलन कैसे बने? कुछ छोटे लेकिन जरूरी कदम

  1. Boundaries तय करें:
    Work from home का मतलब ये नहीं कि आप हर वक्त available हैं। अपने ऑफिस और घरेलू काम के बीच स्पष्ट समय सीमा तय करें। "मेरे काम का टाइम ये है"  ये बोलना सीखें।

  2. परिवार से संवाद:
    घर के दूसरे सदस्यों को ये समझाना जरूरी है कि “घर से काम करना” मतलब “घर का हर काम करना” नहीं। जिम्मेदारियाँ बाँटना जरूरी है।

  3. खुद का समय:
    दिन का कुछ समय सिर्फ अपने लिए रखें बिना guilt के, बिना किसी काम के।

  4. Support सिस्टम बनाएं:
    एक दोस्त, सहकर्मी या परिवार का सदस्य जिससे आप अपनी थकान या frustration साझा कर सकें। Emotional support सबसे बड़ी ताकत होती है।

  5. ‘Perfect’ बनने की कोशिश छोड़ें:
    हर चीज़ को परफेक्ट करने की कोशिश में हम खुद को भूल जाते हैं। कभी-कभी imperfect भी ठीक है क्योंकि असली perfection संतुलन में है, न कि perfectionism में।

असली संतुलन क्या है?

संतुलन का मतलब है खुद की पहचान को खोए बिना अपने हर रोल को निभाना। घर संभालना भी उतना ही जरूरी है जितना खुद को संभालना और ये याद रखना कि “कामकाजी महिला” सिर्फ job करने वाली नहीं, बल्कि वो है जो अपने हर फैसले की मालिक है।

“Work from home” और “Work for home” दोनों ही महिलाओं के जीवन का हिस्सा हैं। लेकिन असली बात ये है कि महिलाएं सिर्फ काम नहीं करतीं, वो हर दिन एक संतुलन जीती हैं कभी laptop और ladle के बीच, कभी meeting और mess के बीच, कभी खुद और सबके बीच वो हर बार खुद को नया बनाती हैं और शायद यही है असली “work-life balance” जहाँ काम, परिवार और खुद – तीनों को बराबर जगह मिले।