कभी “घर की लक्ष्मी” कहकर महिलाओं की भूमिका को सिर्फ घर तक सीमित कर दिया गया था। लेकिन अब वही महिलाएं घर की कमाई, बचत और फैसलों की रीढ़ बन चुकी हैं।भारत में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी सिर्फ एक ट्रेंड नहीं, बल्कि सोच का परिवर्तन है।उनकी कमाई ने न केवल उनके परिवार की हालत सुधारी है, बल्कि समाज के नज़रिए को भी नया रूप दिया है।
सोच में बदलाव: “कमाना सिर्फ पुरुषों का काम नहीं”
पिछले दशक तक आम धारणा थी कि पुरुष घर चलाएगा और महिला उसे संभालेगी।लेकिन अब यह रेखा धीरे-धीरे मिट रही है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की रिपोर्ट के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में कामकाजी महिलाओं की संख्या 2018 की तुलना में लगभग 20% बढ़ी है। ग्रामीण भारत में भी महिलाएं पीछे नहीं हैं स्व-सहायता समूहों (Self Help Groups) के ज़रिए वे छोटे-छोटे उद्योग चला रही हैं, जैसे पापड़, अगरबत्ती, ब्यूटी प्रोडक्ट्स, सिलाई-कढ़ाई आदि। इन प्रयासों से न सिर्फ घर की आय बढ़ी है, बल्कि घरवालों की सोच भी बदली है।अब परिवार गर्व से कहते हैं – “हमारी बेटी खुद अपने पैरों पर खड़ी है।”
डिजिटल दुनिया ने दी महिलाओं को नई पहचान
डिजिटल इंडिया के दौर ने महिलाओं के लिए नए अवसरों के दरवाजे खोले हैं। जहां पहले शहरों तक ही काम के मौके थे, वहीं अब गाँव और छोटे कस्बों की महिलाएं भी मोबाइल और इंटरनेट के ज़रिए घर बैठे कमाई कर रही हैं। कोई ऑनलाइन ट्यूशन दे रही है, कोई इंस्टाग्राम या यूट्यूब पर अपना बिज़नेस चला रही है और कोई घर के बने उत्पाद ऑनलाइन बेच रही है।
घर की सोच में बदलाव: बराबरी और गर्व
पहले बहुत से घरों में यह डर था कि “अगर औरत कमाने लगी, तो घर कौन देखेगा?” लेकिन अब लोग समझने लगे हैं कि कमाई और घर दोनों साथ-साथ चल सकते हैं। कई कामकाजी महिलाएं सुबह ऑफिस जाती हैं और शाम को परिवार के साथ समय बिताती हैं उनकी संवेदनशीलता और समय-प्रबंधन ने घर की परिभाषा बदल दी है। अब यह सोच बन रही है कि “घर तब चलता है, जब दोनों मिलकर चलाएं – एक दिल से, एक दिमाग से।”महिलाओं की कमाई ने रिश्तों में सम्मान और संवाद बढ़ाया है।पति-पत्नी अब एक-दूसरे के फैसलों में शामिल होते हैं। परिवारों में अब बेटियों को भी पढ़ाई और करियर के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
सशक्तिकरण के असली उदाहरण
भारत में हजारों महिलाएं अब अपने दम पर घर चला रही हैं। मध्यप्रदेश की “सखी स्व-सहायता समूह” की महिलाएं हर महीने ₹10,000 से ₹15,000 तक कमा रही हैं।कई महिलाएं “Handloom & Craft” उद्योग से जुड़कर अपने उत्पाद विदेश तक भेज रही हैं। सरकारी योजनाएँ जैसे “Stand Up India”, “Mudra Yojana” और “Start-up India” में 30% से अधिक लाभार्थी महिलाएं हैं। इन आंकड़ों से साफ है कि महिलाएं अब सिर्फ मदद नहीं ले रहीं, बल्कि दूसरों को रोजगार दे रही हैं।
मानसिकता में आत्मनिर्भरता से आत्मसम्मान तक बदलाव
महिलाओं की कमाई ने उन्हें सिर्फ आर्थिक रूप से नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी मजबूत बनाया है। अब वे अपने फैसले खुद लेती हैं, परिवार में अपनी राय रखती हैं और अपने बच्चों के भविष्य को खुद आकार दे रही हैं। कई सर्वे बताते हैं कि जिन परिवारों में महिलाएं काम करती हैं, वहां बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर ज़्यादा निवेश होता है। यह दर्शाता है कि महिलाओं की कमाई सिर्फ घर का खर्च नहीं, घर का विकास भी करती है। जब औरत कमाती है, तो परिवार तरक्की करता है। जब औरत आत्मनिर्भर होती है, तो समाज आगे बढ़ता है।
भविष्य की दिशा बराबरी और सम्मान की ओर
भले ही कुछ जगहों पर अभी भी लिंगभेद और ईगो की दीवारें मौजूद हैं, लेकिन नई पीढ़ी यह समझ रही है कि कमाई सम्मान की निशानी है, न कि मुकाबले की।आज के पुरुष भी अपनी पत्नियों और बेटियों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। भविष्य में जब हर घर में यह सोच आ जाएगी कि “महिला की कमाई परिवार की ताकत है”, तब समाज सच में सशक्त कहलाएगा। महिलाओं की कमाई अब सिर्फ पैसों की बात नहीं, बल्कि परिवर्तन की कहानी है।यह बदलाव धीरे-धीरे हर घर की सोच में उतर रहा है। आज की महिला अपने परिवार की ज़रूरत नहीं, उसकी शान बन चुकी है।वह साबित कर रही है कि- “कमाना सिर्फ ज़रूरत नहीं, आत्मसम्मान की पहचान है।”
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