अगर किसी चीज़ को पाने की सच्ची चाह हो, तो समाज के कोई भी बंधन—चाहे वह धर्म, जाति या परंपरा का क्यों न हो—रास्ते में रुकावट नहीं बन सकते। इस कहावत को हकीकत में बदलकर दिखाया है केरल की मुस्लिम छात्रा साबरी ने, जिन्होंने अपनी लगन और मेहनत से वह मुकाम हासिल किया, जो इससे पहले किसी ने नहीं किया था।
डीम्ड विश्वविद्यालय केरल कलामंडलम की स्थापना के 95 वर्षों में पहली बार, एक मुस्लिम लड़की ने मंच पर भारतीय शास्त्रीय नृत्य 'कथकली' का प्रदर्शन किया और इतिहास रच दिया। साबरी ने इस अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण की भूमिका (कृष्ण वेशम) निभाई और अपने शानदार प्रदर्शन से सबका दिल जीत लिया।
साबरी कोल्लम जिले के अंचल की रहने वाली हैं। वह फोटोग्राफर निजाम अम्मास और अनीसा की बेटी हैं। बचपन से ही उन्हें कथकली नृत्य देखने का शौक था। वह अपने गांव के पास मंदिर में होने वाले रामायण आधारित कथकली प्रदर्शन को रातभर बैठकर देखा करती थीं। यहीं से उनके भीतर नृत्य के प्रति गहरी रुचि जागी।
प्रदर्शन से पहले मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा—“मेरा सपना हकीकत बनने जा रहा है। मैं खुश हूं कि मुझे वह नृत्य करने का मौका मिल रहा है, जिसे मैं हमेशा से करना चाहती थी।”
साल 2021 में जब केरल कलामंडलम ने पहली बार लड़कियों के लिए प्रवेश देने की घोषणा की, तब साबरी छठी कक्षा में थीं, जबकि संस्थान में प्रवेश आठवीं कक्षा से ही मिलता था। इस बाधा से हतोत्साहित होने के बजाय, उनके पिता ने उन्हें एक स्थानीय गुरु से कथकली की प्रारंभिक शिक्षा दिलाई।
साबरी ने छह महीने तक निरंतर अभ्यास किया और लॉकडाउन हटने के बाद भी अपनी ट्रेनिंग जारी रखी। साल 2023 में उन्होंने कलामंडलम के आठवीं कक्षा के कोर्स में प्रवेश के लिए आवेदन किया और सफलतापूर्वक दाखिला लिया।
कलामंडलम में दशहरे के अवसर पर कथकली नृत्य का आयोजन हुआ। इस प्रदर्शन में साबरी सात छात्रों में अकेली मुस्लिम छात्रा थीं। यह क्षण उनके लिए मील का पत्थर साबित हुआ। उन्होंने इस दिन अपनी तीन साल की मेहनत को मंच पर उतारा और दर्शकों से खूब सराहना बटोरी।
साबरी का सपना है कि वह आगे चलकर एक सफल नृत्यांगना और अध्यापिका बने। अपनी कला के ज़रिए वह न सिर्फ खुद के लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी नए रास्ते खोलना चाहती हैं।
साबरी की कहानी उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है, जो सपनों को लेकर झिझकते हैं या सामाजिक बंधनों के कारण पीछे हट जाते हैं। उन्होंने दिखा दिया कि जुनून और समर्पण से हर दीवार को पार किया जा सकता है।
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